अहोई अष्टमी पूजा
अहोई अष्टमी पूजा का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है, खासकर उत्तर भारत में। यह पर्व कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। इस दिन माताएँ अपनी संतानों की लंबी उम्र और खुशहाली के लिए उपवास रखती हैं और अष्टमी तिथि को शाम के समय अहोई माता की पूजा करती हैं। पूजा की विधि के अनुसार, एक दीवार पर अष्टमी माता का चित्र बनाया जाता है या चित्रित किया जाता है। इसके बाद पूजा स्थल को स्वच्छ करके, जल, दूध, रोली, मौली, चावल, फल, मिठाई आदि से पूजा की जाती है। विशेष रूप से कच्चा सूत अहोई माता के चित्र पर चढ़ाया जाता है और सप्तमात्रिकाओं की पूजा की जाती है। पूजा के बाद चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत को खोला जाता है।
अहोई अष्टमी के लाभ
- संतान की दीर्घायु: माता द्वारा किए गए उपवास से संतान की आयु लंबी होती है।
- संतान की खुशहाली: पूजा करने से बच्चों के जीवन में खुशहाली आती है।
- संतान के स्वास्थ्य में सुधार: व्रत से संतान का स्वास्थ्य बेहतर होता है।
- धार्मिक लाभ: पूजा से धार्मिक लाभ प्राप्त होता है।
- सकारात्मक ऊर्जा: पूजा से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
- संतान के संकटों से मुक्ति: पूजा से बच्चों के जीवन के संकट दूर होते हैं।
- पारिवारिक सामंजस्य: पूजा से परिवार में प्रेम और सामंजस्य बढ़ता है।
- आध्यात्मिक उन्नति: यह व्रत आत्मिक उन्नति का साधन बनता है।
- मातृत्व के कर्तव्यों का निर्वहन: यह व्रत माताओं को अपने कर्तव्यों की याद दिलाता है।
- धैर्य और संयम: उपवास से धैर्य और संयम का विकास होता है।
- समृद्धि: व्रत और पूजा से घर में समृद्धि आती है।
- संतान का सही मार्गदर्शन: पूजा से संतान को सही दिशा मिलती है।
- धर्म के प्रति आस्था: इस व्रत से धर्म के प्रति आस्था बढ़ती है।
- सकारात्मक विचार: व्रत से सकारात्मक विचारों का विकास होता है।
- घर में शांति: पूजा से घर में शांति बनी रहती है।
- संतान का शिक्षा में विकास: संतान की शिक्षा में उन्नति होती है।
- सुख-शांति की प्राप्ति: व्रत और पूजा से सुख-शांति मिलती है।
- संतान का चरित्र निर्माण: बच्चों का चरित्र सुदृढ़ होता है।
- आर्थिक उन्नति: व्रत से आर्थिक स्थिति मजबूत होती है।
- पारिवारिक कल्याण: पूरे परिवार का कल्याण होता है।
यह पूजा योग्य पंडित द्वारा ही हम करवाते हैं, और हम इस पूजा को ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों माध्यमों से करवाते हैं।