अबाधक व्रत कथा
अबाधक व्रत एक महत्वपूर्ण हिंदू धार्मिक व्रत है जिसे विशेष रूप से महिलाएं अपने परिवार की सुख-समृद्धि और दीर्घायु के लिए रखती हैं। इस व्रत की कथा का पाठ व्रत के दिन अनिवार्य माना जाता है। प्राचीन काल में एक नगर में एक ब्राह्मण दंपत्ति रहता था, जो बहुत ही धार्मिक और भगवान के भक्त थे। उनकी एक बेटी थी जिसका नाम सुशीला था। सुशीला का विवाह एक सुयोग्य ब्राह्मण युवक से हुआ। विवाह के बाद, सुशीला अपने ससुराल गई, लेकिन वहां का माहौल कठिन और कठिनाइयों से भरा था। उसके ससुराल वाले गरीब थे और बहुत कठिनाई से जीवन यापन कर रहे थे। सुशीला ने अपने पति से कहा, “हम भगवान की पूजा और व्रत कर अपने जीवन को सुखी और समृद्ध बना सकते हैं।” उसके पति ने सहमति जताई और दोनों ने अबाधक व्रत करने का निर्णय लिया। व्रत का पालन करते हुए, सुशीला ने पूर्ण श्रद्धा और भक्ति से भगवान की पूजा की और अबाधक व्रत कथा का पाठ किया। भगवान उनकी भक्ति से प्रसन्न हुए और उन्हें आशीर्वाद दिया। धीरे-धीरे उनके ससुराल की सभी परेशानियां दूर होने लगीं और उनका जीवन खुशहाल हो गया। अबाधक व्रत की महिमा से सुशीला का परिवार संपन्नता और समृद्धि से भर गया। इस प्रकार, इस व्रत की कथा से यह संदेश मिलता है कि सच्ची भक्ति और श्रद्धा से भगवान प्रसन्न होते हैं और सभी कष्टों को दूर करते हैं।
अबाधक व्रत के लाभ
- इच्छाओं की पूर्ति: इस व्रत के करने से मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।
- समृद्धि: यह व्रत परिवार में समृद्धि और आर्थिक स्थिरता लाता है।
- स्वास्थ्य में सुधार: भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करने से स्वास्थ्य में सुधार होता है।
- मन की शांति: व्रत और पूजा से मन की शांति मिलती है और तनाव कम होता है।
- पारिवारिक सद्भाव: व्रत पारिवारिक संबंधों को मजबूत करता है और घर में सद्भाव और समझ बढ़ाता है।
- आध्यात्मिक विकास: व्रत में भाग लेने से आध्यात्मिक विकास होता है और विश्वास गहरा होता है।
- सकारात्मक ऊर्जा: ऊर्जा को आकर्षित करता है, जिससे जीवन में बाधाओं और चुनौतियों को पार करने में मदद मिलती है।
- सुरक्षा: भगवान का आशीर्वाद बुरी शक्तियों और नकारात्मक प्रभावों से रक्षा करता है।
- सांस्कृतिक संबंध: व्रत का पालन करने से व्यक्ति अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक जड़ों से जुड़ता है।
- सामुदायिक एकता: यह व्रत सामुदायिक और सामूहिकता की भावना को बढ़ावा देता है।
- धार्मिक ज्ञान: व्रत में शामिल होने से धार्मिक ज्ञान और परंपराओं की समझ बढ़ती है।
- धैर्य और संयम: व्रत करने से धैर्य और संयम का विकास होता है।
- प्राकृतिक आपदाओं से बचाव: भगवान का आशीर्वाद प्राकृतिक आपदाओं से बचाव करता है।
- मानसिक संतुलन: व्रत करने से मानसिक संतुलन प्राप्त होता है।
- समाज में सम्मान: धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेने से समाज में सम्मान और प्रतिष्ठा मिलती है।
- बुरी आदतों से मुक्ति: व्रत करने से बुरी आदतों और नशे से मुक्ति मिलती है।
- कृषि उत्पादकता में वृद्धि: ग्रामीण क्षेत्रों में यह व्रत फसलों की अच्छी पैदावार के लिए किया जाता है।
- शिक्षा में उन्नति: छात्र व्रत करने से शिक्षा में उन्नति प्राप्त करते हैं।
- शुभ फल: व्रत करने से जीवन में शुभ फल प्राप्त होते हैं।
- जीवन में संतोष: व्रत करने से जीवन में संतोष और आनंद का अनुभव होता है।
यह पूजा योग्य पंडित द्वारा ही हम करवाते हैं, और हम इस पूजा को ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों माध्यमों से करवाते हैं।
पूजा मुहुर्थः हर महीने की त्रयोदशी